Sunday 1 July 2018

Sanju - Movie Review


Watched Sanju yesterday.

Important Note: First of all, I am not a big fan of Sanjay Dutt and also I had the same thoughts as many of us had when I heard that a biopic on Sanjubaba is going to be made. I didn't think that Sanju deserves a biopic to be made on him. Having said that, I love some of his movies like Munnabhai Series, Vaastav, Kaante, Sadak, Khalnayak etc.

सुप्रसिद्ध मातापिता की संतान होना अपने आप में एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है।  खासकर बॉलीवुड में तो अगर आप सुपरस्टार के पुत्र या पुत्री है तो आपके ऊपर पहली ही फिल्म से सुपर स्टार की इमेज बनाने का बहुत बड़ा प्रेशर होता है।  संजय दत्त भी उसी दबाव का शिकार रहा।  उनकी काफी फिल्मो के फ्लॉप होने का कारण भी शायद यही रहा।  लेकिन कुछ हद तक बाकी स्टार सन्तानो के मुकाबले उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक जगह बनायीं है। सुनील दत्त और नरगिसजी की बिगड़ैल संतान संजय दत्त और विवादों का सम्बन्ध चोली और दामन जैसा रहा है।

जब संजय दत्त का नाम मुंबई बेम धमाकों में आया तब मैं १२-१३ साल का था।  तब तक मेने शायद ही संजू की कोई मूवी देखि होगी।  मुझे आज भी याद है की बम धमाकों में संजय दत्त का नाम सुनकर मेरे पिताजी ने बोलै था "नरगिस और सुनील दत्त साब का लड़का ऐसा निकला?" ... जब आप एक बड़े घराने की संतान होते है तो आप सिर्फ एक व्यक्ति नहीं होते... आप अपने परिवार की एक छवि होते है जिसे लोग देखते रहते है... संजय दत्त शायद यही बात भूल गए थे। उनका सबसे बड़ा अपराध बेम धमाकों के वक़्त घर में राइफल रखना और अंडरवर्ल्ड से दोस्ती करना है।  हालांकि ऐसा करने वाले पहले और आखरी इंसान नहीं थे।  अंडरवर्ल्ड से दोस्ती के किस्से बॉलिवुड में आम बात हो चुकी है।

अब बात फिल्म की...

सबसे पहले जब मेने सुना की संजय दत्त की बायोपिक बन रही है तो मेरा पहला रिएक्शन था " इसके ऊपर क्या बायोपिक !!" लेकिन जबसे संजू का टीज़र और ट्रेलर देखा , तबसे ये फिल्म के लिए मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई।  ख़ास क्र के रणबीर कपूर को देख के।  रणबीर कपूर अपने पिता की तरह अपनी जवानी को चॉकलेटी हीरो के रोल कर कर के व्यर्थ करने वालों में से नहीं है वह इस फिल्म से फिर एक बार साबित होता है।  पहले भी उन्होंने अलग किस्म के रोल कर के एक्टिंग के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है।

फिल्म शुरू होती है संजय दत्त के घर से जहाँ सीधे हीमे उनके साथ मान्यता दत्त दिखाई पड़ती है।  सबको लगता है की अब फ़्लैश बैक में उनकी बाकी दो पत्नियों की स्टोरी जो काम लोग जानते है , हमे देखने को मिलेगी।  लेकिन फिल्म सीधे ले जाती है रोकी फिल्म के रिलीज़ के वक़्त में।  पहले हाफ में संजय दत्त के ड्रग्स के शिकार बनने की कहानी ही दिखाई गई है।  कहीं न कही, लेखक और डिरेकटर ने संजू को ड्रग्स का आदि कम और विक्टिम ज़्यादा दिखने की कोशिश की है।  जितनी बार संजू ने ड्रग्स लिया उतनी बार वो हालात का शिकार दिखाया गया है , जो मेरे हिसाबी से गलत है।  अच्छा होता फर्स्ट हाफ में अगर संजय दत्त के बचपन की कुछ कहानिया भी ले लेते... फिल्म सीधा बिगड़ैल संजू से शुरू होती है... तब मुझे वो ट्रेलर वाला डायलॉग याद आया... "छोटे... आधे से क्यों सुना रहा है?" ... फर्स्ट हाफ थोड़ा लम्बा और कहीं न कही बोरिंग है...

इंटरवल के बाद फिल्म अपनी स्पीड पकड़ती है। थैंक्स टू रणबीर एंड विकी कौशल।

इस फिल्म की जान रणबीर कपूर और विकी कौशल है। फिल्म के पहले फ्रेम से दर्शक को लगता है की रणबीर कपूर नहीं, खुद संजय दत्त ही फिल्म में काम कर रहा है।  हालांकि संजूबाबा जैसी आवाज़ रणबीर के पास नहीं है लेकिन फिर भी रणबीर ने एक ऐसे कैरेक्टर में घुस के अभिनय किया है जो अभी ज़िंदा है और जिसकी सीधी कम्पेरिज़न उसके साथ होने वाली है।  रणबीर कपूर खुद को संजू के कैरेक्टर में ढालने में शत प्रतिशत सफल हुए है।  अच्छा हुआ की उनकी आवाज़ को असली संजू की आवाज़ से दब नहीं किया गया... वरना ये एक मिमिक्री फिल्म लगती।  रणबीर के इस पर्फोर्मंस को देख उनका बेस्ट एक्टर अवार्ड तो पक्का दिख रहा है।

विक्की कौशल , जिन्होंने संजू के गुजराती मित्र का रोल किया है, एक शानदार परफॉरमेंस दिया है।  कैसे एक अच्छा दोस्त आपको सुधर सकता है वह कमलेश के किरदार में देखने को मिला।  कमलेश का वोडका मिले हुई चाय पिलाना, संजू को ये समजाना की उसका पिता उसके लिए कितना चिंतित है , कदम कदम पे उसका साथ देना ये सब सिन में विकी कौशल ने अव्वल दर्जे का अभिनय किया है।

परेश रावल और मनीषा कोइराला ने सुनील दत्त और नरगिस का किरदार भी अच्छी तरह से निभाया।  बहुत लोगों को ये अपेक्षा थी की परेश रावल भी रणबीर की तारा हूबहू सुनील दत्त लगेंगे लेकिन Again ... ये मिमिक्री नहीं थी।  बिगड़ैल संतान और बीमार पत्नी के बिच परेशान होता एक पिता और पति, बेबस होते हुए भी जता नहीं सकता यह परेश रावल ने बखूबी निभाया।  बाप - बेटे का रिश्ता ही अजीब होता है... दोनों एक दूसरे को अपने मन की बात नहीं कह पाते।

फिल्म में लेखक ने संजू के बारे में वही दिखाया है, जो थोड़ा बहुत दुनिया जानती है।  उनकी बाकी दो पत्नियों, उनकी बेटी त्रिशला , एक सुप्रसिद्ध अभिनेत्री का उस ज़माने में तथाकथित अफेयर, संजय दत्त की रिहाई में ठाकरे परिवार द्वारा की गई मदद ... इन सब के बारे में फिल्म में कोई ज़िक्र ही नहीं है।  शायद लेखक और डिरेक्टर किसी विवाद में पड़ना नहीं चाहते थे।  ये सब खामियों के बावजूद राजू हिरानी और अभिजात जोशी ने अच्छी फिल्म बनाई है।  थ्री इडियट्स और मुन्नाभाई सीरीज़ के मुकाबले संजू काफी हद तक वीक स्क्रिप्ट है पर कुछ सिन में हमे राजू हिरानी का मैजिक फिर देखने को मिलता है... जैसे की  संजू की अपने पिता के लिए स्पीच देना, कमलेश और संजू के बीच सुनील दत्त को लेकर वार्तालाप, कमलेश और सुनील दत्त की संजू के प्रति  फ़िक्र,नरगिस का ब्रेकफास्ट टेबल वाला सिन, सुनील दत्त का ट्रैफिक सिग्नल में गाडी का शीशा फक्र के साथ निचे करनेवाला सिन,हिरानी के अलावा और कोई ये नहीं कर सकता।

तो क्या ये फिल्म एक क्रिमिनल को ग्लोरिफ़ाई करती है ? एक हद तक हां... फिल्म में संजयदत्त को इनोसेंट और और हालत का शिकार बताया गया है।  लेकिन रिपॉन्सिबिलिटी भी एक चीज़ होती है... चाहे वो परिवार की इज़्ज़त को दाँव पे रख के ड्रग्स का शिकार होना हो, या कानून को ताक पे रख के घर में प्रतिबंधित हथियार रखना हो... ये सब कर के कोई इनोसेंट नहीं बन सकता। फिल्म को बायोपिक न बोल के... अदालत में संजय दत्त के पक्ष में वकीलों द्वारा की गई दलीलों का फ़िल्मी रूपांतरण कहेंगे तो ज़्यादा अच्छा होगा।  पर चलिए ठीक है... आज के युग में जहाँ रईस , डैडी, वंसअपॉन अ टाइम इन मुंबई जैसी फिल्मे बन रही है तो एक और सही... !! पिता पुत्र के रिश्ते, रणबीर, विकी कौशल और परेश रावल के परफॉरमेंस के लिए ये फिल्म एकबार ज़रूर देखे।

म्यूज़िक... थोड़ा ज़्यादा अच्छा होना चाहिए था... पर्सनली मुझे रूबी गाना पसंद आया।

और हाँ... फिल्म में सोनम भी है...

ओवरआल... A good film after a long time.

I would give 3.5 out of 5.

1 comment:

  1. Sir tusi great ho...!!!
    NJ a kidhu etle final....😎😎

    ReplyDelete